उत्तराखण्ड का प्राचीन इतिहास
उत्तराखण्ड का इतिहास उत्तराखण्ड का इतिहास हम तीन भागों में बाँट सकते हैं। 1.प्रागैतिहासिक काल 2. आद्य ऐतिहासिक काल 3. ऐतिहासिक काल प्रागैतिहासिक काल : प्रागैतिहासिक काल इस काल में हमें अत्यंत प्राचीन काल यह सबसे लम्बा समय है इसमें गुफा, शैलचित्र ,कंकाल,मृदभांड , धातु उपकरण से जानकारी प्राप्त होती है। हेनवुड नामक व्यक्ति ने देवीधुरा ,चम्पावत से सख्य प्राप्त किये है। उत्तराखंड में परतत्वों की खोज का श्रेय हेनवुड को जाता है। उन्होंने देवीधुरा से महापाषाण काल के अवशेष प्राप्त किये हैं। उत्तराखण्ड के प्रमुख पुरास्थल अल्मोड़ा ,चमोली,उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ , हरिद्वार आदि में पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं। अल्मोड़ा लाख उड्डियार ( लाख गुफा ) -इसकी खोज 1968 में महेस्वर प्रसाद ने की यहाँ पर मनुष्य और पशुओं के प्रपात हुए हैं। नागफनी आकर कसार देवी मंदिर – कश्यप पहाडी , 14 नर्तकी के सुन्दर चित्र मिले हैं। फलसीमा – योग मुद्रा वाली मानव आकर्तियाँ , जाखणमंदिर – यक्षों के निवास स्थल के साक्ष्य मिले हैं। पेटशाल और फड़का नौलि – जलाशय के साक्ष्य मिले जिसकी खोज जसुधार ने की है लावेथाप – लाल रंग के चित प्राप्त हुए हैं। चमोली ग्वरख्या गुफा – इसके खोजकर्ता राकेश भट्ट मलारी गांव – 5.2 किलोग्राम का सोने का मुखवर्ण मिला है और नरकनकाल मिले है। किमणि गांव -हल्के सफ़ेद रंग के हथियार और पशुओं के चित्र उत्तरकाशी – नीले रंग के शैल्य चित्र पिथौरागढ़ में बनकोट स्थान यहाँ पर ताम्र मानव मूर्तियां मिली हैं। आद्य ऐतिहासिक काल प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ वेद पुराण महाभारत रामायण अभिज्ञान शकुंतलन वेद – वेदों की संख्या चार है। ऋग्वेद ,सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद इनमे ऋग्वेद सबसे प्राचीन है और अथर्ववेद सवसे नवीन है। उत्तराखण्ड का सबसे अधिक वर्णन सर्वाधिक बार ऋग्वेद में हुआ है। ऋग्वेद में उत्तररखण्ड को देवभूमि , मनीषियों की भूमि कहा गया है। ब्राह्मण ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ ऐसे ग्रथ है जो वेदो को समझने के लिए गद्य में लिखे हैं। ऐतरेय ब्राह्मण रिग वेद का है। सबसे प्राचीन ब्राह्मण सतपथ है जो यजुर्वेद के ब्राह्मण ग्रथ है। पुराण पुराणों की संख्या 18 है। स्कन्द पुराण में हिमालय को 5 भागों में बांटा गया है जिनमे नेपाल , मानसखंड ,केदारखंड जालधर ,कश्मीर है। मानसखंड और केदारखंड उत्तरखण्ड के भाग हैं। कुमाऊं को कुर्मांचल भी कहा गया है। ब्रह्मपुराण और वायुपुराण में कुमाऊं के किरात , यक्ष , किल्लर, नाग ,गंधर्व जातियों का वर्णन है। महाभारत वनपर्व में राजा विराट का उल्लेख मिलता है। हरिद्वार से केदारनाथ तक का वर्णन किया है। यहाँ के राजा पुलिंद और किरात थे। रामायण टिहरी गढ़वाल में वशिष्ठ गुफा , कुंड आश्रम और विसोम पर्वत जिसे तपोवन कहा जाता है। पौडी गढ़वाल में माता सीता पृथ्वी में समाई थी। अभिज्ञान शकुंतलन यहाँ से हमे जानकारी प्राप्त होती है। इसकी रचना कालिदास द्वारा की गई है। बद्रीआश्रम और कंदवा आश्रम ( दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम प्रंसग ) यहाँ पर मालिनी नदी भी है। प्रमुख लेख कालसी शिलालेख – अशोक का अभिलेख है , इसकी भाषा प्राकृत है और लिपि ब्राह्मी है। इसमें घोषणा की गयी – हिंसा न करें और मनष्यों और पशुओं के लिए चिकत्सा की व्यवस्था कर दी गयी है। राजकुमारी ईश्वरा का लखमण्डल शिलालेख उत्तराखंड में यदुवंशी शासको के बारे में उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक काल 1.प्राचीन काल 2.मध्य काल 3.आधुनिक काल 1.प्राचीन काल कुलिन्द शासक शक शासक कुषाण कर्तृपुर शासक मौखरि वंश हर्ष वर्धन कुलिंद वंश समय – 1 शताब्दी से 3 ./4 शताब्दी जानकारी के स्रोत – पुरातात्विक और साहित्यिक पुरातात्विक साक्ष्य में : रामायण महाभारत अष्टाधायी पुराण वृहसहिंता लेखक वराहमिहिर साहित्यिक स्रोत : कालसी शिलालेख भरहुत अभिलेख मथुरा अभिलेख सिक्के कुलिंद वंश सबसे पहले राजवंश है जिसे उत्तराखण्ड में शासन किया। इसने तीसरी सदी से चौथे सदी तक शासन किया। अशोक के अभिलेख में कुलिंद वंश के क्षेत्र को अपरान्त और यहाँ के शासक को पुलिंद कहा गया। इस वंश की प्रारंभिक राजधानी कालकूट थी इस वंश का सबसे प्रतापी राजा अमोघभूति था। कालसी शिलालेख के अनुसार कुलिंद राज वंश मौर्यों के आधीन था। कुलिंद शासक सुबाहु विश्वदेव अग्गरराज धनभूति बलभुति शिवदत्त हरिदत्त शिवपालित क्षत्रस्वार कुलिंद वंश की राजधानी श्रीनगर कालकूट सुधनगर बेहट कुलिंदो का विस्तार उत्तर में हिमालय तक , पूरब में काली नदी , पक्षिम में सतलुज ,दक्षिण बेहट तक सिक्के बेहट से मिले हैं। सर्वाधिक मुद्राएं अमोघभूति की मिली हैं। कुलिंद वंश की मुद्राएं कुलिंद वंश की तीन प्रकार मुद्राएं प्राप्त हुई हैं। अमोघभूति प्रकार अल्मोड़ा प्रकार क्षात्रेश्वर प्रकार अमोघभूति प्रकार अमोघभूति प्रकार की मुद्राएं तावें एवं चांदी की हैं। इन पर ब्राह्मी लिपि , और खरोष्ठी लिपि की हैं। ताबें की मुद्राएं 9.5 से 252 ग्रेन की बनी हैं और चांदी मुदरौओं का वजन 31 से 38 ग्रेन की हैं। इन मुद्राओं पर नदी, मृग , स्वस्तिक ,नारी , और नाग के चित्र बने हैं। इन मुद्राओं पर हिन्द यूनानी राजाओं की रजत मुद्राओं का प्रभाव है। अल्मोड़ा प्रकार इन मुद्राओं की लिपि ब्राह्मी है। यह मुरायें ताबें की है। जिनका बजन 119 से 327 ग्रेन है। मुद्राओं में चित्र – वृत , कूबड़ बैल ,मानव मूर्ति नाग आदि। इन मुद्राओं में आठ राजाओं के नाम देखने को मिलते हैं। शिवदत्त ,शिवपालित ,हरिदत्त भागभत यह सब मुद्राएं अल्मोड़ा से प्राप्त हुई हैं।राजा शिवरक्षित की मुद्रा ब्रटिश संग्रालय से प्राप्त की हैं। कत्यूरी घाटी से अशोक मि मुद्रा प्राप्त हुए हैं। क्षात्रेश्वर प्रकार की मुद्राएं लिपि – ब्राह्मी धातु – ताबां लेख : भागवत छत्रस्वार महामना मुद्राओं में चित्र – त्रिशूल धारण किये हुए शिव भगवान् इन शिव प्रकार की मुद्राएं भी कहा जाता है। इन मुद्राओं पर कुषाण का प्रभाव देखने को मिलता है। इनमे बुद्ध धर्म से संबंधित भी बताई गयी हैं। शक वंश का शासन शकों ने कुलिंदों को पराजित करके मैदानों पर कब्ज़ा कर लिया था यहाँ पर से सूर्य मंदिर एवं सूर्य मुर्तिया प्राप्त हुए हैं। यहाँ सबसे प्रसिद्ध अल्मोड़ा का कटारमल सूर्यमंदिर है। इसके साथ शक संवत भी यही से प्राप्त हुई है। कुछ मंदिर – पलेठी का सूर्य मंदिर – हिंडोला खाल टेहरी गढ़वाल ( देवप्रयाग ) मठ का मंदिर – पिथौरागढ़ कुलसारी का सूर्य मंदिर -चमोली खेतीखान का सूर्य मंदिर -चम्पावत मझियाली मंदिर – उत्तरकाशी कुषाण वंश शकों के बाद कुषाणों ने अधिकार किया। इनकी जानकारी के स्रोत मिले हैं। वीरभद्र ( ऋषिकेश ) मोरध्वज ( कोट्टवार ) गोविषाण ( काशीपुर ) गोविश्षण का उल्लेख करते हुए कांटी प्रसाद नौटियाल द्वारा अपनी पुस्तक आर्केलॉजी ऑफ़ कुमाऊं में उन्होंने बताया की गोविश्णा कुषाणों का एक प्रमुख नगर था। कनिष्क प्रथम जो कुषाण वंश का प्रतापी राजा था उसकी नाड़क स्वर्ण मुद्राएं काशीपुर से प्राप्त हुई हैं। 1972 में 44 स्वर्ण मुद्राएं मुनि की रेती से प्राप्त हुई हैं। सात कुषाण स्वर्ण मुद्राएं खटीमा के पास कांचपर से प्राप्त हुए हैं। कुषाण वंश के समकालीन एक वंश और था जिसका नाम यौधेय वंश था। कर्तृपुर राज्य कर्तृपुर राज्य में उत्तराखण्ड , हिमाचल प्रदेश ,रोहिलखण्ड का उत्तरी भाग शामिल था। कर्तृपुर राज्य विद्वान् मानते है की कर्तृपुर राज्य की स्थापना कुलिंदो ने की थी। पांचवी सदी में नागों ने कर्तृपुर राज्य के कुलिंद राजवंश को समाप्त करके उत्तराखंड पर अधिकार कर लिया था। नाग वंश का शासन ( 5 वी – 6 वी शताब्दी ) समय – 5 वी – 6 वी शताब्दी इनकी जानकारी हमें गोपेश्वर त्रिशूल लेख से प्राप्त होती है। गोपेश्वर त्रिशूल लेख ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। इसमें चार नाग राजाओं का वर्णन है। स्कन्द नाग विभुनाग अंशुनाग गणपति नाग मौखरि राज वंश का शासन ( 6 वी शताब्दी ) 6 वी शताब्दी में कन्नौज के मौखरि राजवंश ने नागों को पराजित किया और अपना शासन स्थापित किया |
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