उत्तर प्रदेश का इतिहास
▶ उत्तर प्रदेश के ताम्र पाषाणिक संस्कृत के साक्ष्य आलमगीरपुर (मेरठ) और हुलास (सहारनपुर) से प्राप्त हुये।उत्तर प्रदेश में पुरापाषण कालीन सभ्यता के साक्ष्य प्रयागराज के बेलन घाटी, सोनभद्र के सिंगरौली घाटी तथा चंदौली के चकिया नामक पुरास्थली से प्राप्त हुये हैं।
▶ बेलन घाटी के ‘लोहदानाला’ नामक पुरास्थल से पाषाण उपकरणों के साथ-साथ एक अस्थि निर्मित मातृ देवी की प्रतिमा भी प्राप्त हुयी है।
▶ मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़ के सरायनाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुये हैं।
▶ सरायनाहर राय में 14 शवाधान मिले हैं, जिनमें मृतक का सिर पश्चिम दिशा की ओर है। सरायनाहर से 8 गर्त चूल्हे भी प्राप्त हुये हैं।
▶ प्रयागराज के मेजा तहसील के चोपानीमाण्डों पुरास्थल से झोपड़ियों एवं निट्टी के बर्तन के अवशेष प्राप्त हुये हैं। यहाँ से संसार के प्राचीनतम मृदभांड के भी साक्ष्य मिले हुये हैं।
▶ उत्तर प्रदेश के महदहा पुरास्थल से अन्य उपकरणों के साथ-साथ सिल, लोढ़े, गर्त चूल्हे, शवाधान, अस्थि एवं आवास के साक्ष्य मिले हैं।
. ▶ दमदमा (प्रतापगढ़ जिला) पुरास्थल से हड्डी एवं सींग के उपकरण व आभूषण, गर्त चूल्हे तथा 41 शवाधान मिले हैं।
▶ नवीनतम खोजों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला
▶ उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले में स्थित लहुरादेव है।लहुरादेव से 8000 ई.पू. से 9000 ई.पू. के मध्य चावल के साक्ष्य मिले हैं।
▶ प्राचीनतम चावल के साक्ष्य वाला स्थल कोलडिहवा (प्रयागराज जिले में बेलन नदी के तट पर स्थित है।)
▶ आलमगीरपुर से हड़प्पाकालीन वस्तुएं प्राप्त हुयी हैं, यह हड़प्पा सभ्यता के पूर्वी विस्तार को प्रकट करता है। यहाँ से कपास उपजाने के साक्ष्य भी प्राप्त हुये हैं।
▶ 16 महाजनपदों में से 8 महाजनपद उ.प्र. में स्थित थे। जिनके नाम थे- कुरू, पांवाल, काशी, कोशल, शूरसेन, चेदि, वत्स, मल्ल ।
▶ कुशीनगर में 483 ई.पू. 80 वर्ष की अवस्था में गौतमबुद्ध को गहापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुयी थी।
▶ उत्तर वैदिक युग से संबद्ध स्थल अंतरजीखेड़ा (कासगंज जिले में स्थित) से गैरिक मृदभांड तथा कृष्ण लोहित मृदभांड (चित्रित धूसर पात्र परम्परा संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुये हैं।)
▶ जैन ग्रन्थों के अनुसार आदिनाथ सहित पांच तीर्थकरों की जन्मभूमि अयोध्या थी।
▶ अहरौरा (मिर्जापुर) से अशोक का लघु शिलालेख तथा सारनाथ (वाराणसी) एवं कौशाम्बी से लघु स्तम्भ लेख मिला है।
▶ सोहगौरा ताम्रलेख (गोरखपुर- मौर्य काल का यह ताम्र लेख उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद से मिला।) इस ताम्र लेख से यह गना चलता है कि मौर्य काल में अकाल की स्थिति में जनता को अनाज का वितरण किया जाता था।
▶ प्रयाग के अशोक स्तम्भ पर हरिषेण द्वारा रचित समुद्रगुप्त का प्रशस्ति लेख उत्कीर्ण है। इस पर बीरबल एवं जहांगीर का नाम भी मिलता है।
▶ भितरी स्तम्भ लेख (गाजीपुर) में पुष्यमित्रों और हूणों के साथ स्कंदगुप्त के युद्ध का वर्णन है। श्रावस्ती में कनिष्क के दो अभिलेख प्राप्त हुये हैं। हड़प्पायुगीन अवशेष हुलास से मिले हैं।
मध्य कालीन इतिहास
आगरा की स्थापना सुल्तान सिकंदर लोदी ने 1504 में की थी।आगरा में स्थित मुसम्मन बुर्ज से हरम की महिलाएं पशु युद्ध देखती थी। आगरा में ही मीना बाजार लगता था। इसी बाजार में जहांगीर सर्वप्रथम नूरजहाँ से मिला था।
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था तथा आगरा के किले का निर्माण अकबर ने कराया था।आगरा नूरजहाँ ने में अपने पिता एतमादुद्दौला का मकबरा बनवाया था।
शाहजहाँ द्वारा निर्मित आगरा का ताजमहल एवं मोती मस्जिद स्थापत्य कला की श्रेष्ठता का प्रतीक है। 1296 में ही सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या अलाउददीन खिलजी ने यहीं (कड़ा नामक स्थान) पर करवा दी थी।
1545 में कालिंजर के सैन्य अभियान के दौरान ही बारूद विस्फोट से शेरशाह सूरी की मृत्यु हुई थी।अकबर के नवरत्नों में शामिल बीरबल काल्पी से संबद्ध था। यहां से बीरबल का रंगमहल तथा मुगलकालीन टकसाल के अवशेष प्राप्त हुये हैं।सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने 1358 में अपने बड़े भाई मुहम्मद तुगलक उर्फ जौना खाँ के सम्मान में जौनपुर की स्थापना की थी।
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1857 का विद्रोह एवं उत्तर प्रदेश
1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ 10 मई को मेरठ से हुआ।
महत्वपूर्ण नेतृत्वकर्ता
बरेली – खान बहादुर खाँ
इलाहाबाद- लियाकत अली
कानपुर – नाना साहब
फैजाबाद – मौलवी अहमदुल्लाह शाह
झाँसी- रानी लक्ष्मीबाई
.लखनऊ – बेगम हजरत महल
.फैजाबाद – मोलवी अहमदुल्लाह शाह.
1857 के विद्रोह के समय भारत का गवनर जनरल लार्ड कैनिंग था। विद्रोह के समय लार्ड कैनिंग ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था।
1857 के स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक कमल और रोटी था।
1857 ई. इस विद्रोह से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र अवध और बुंदेलखण्ड थे।
1857 ई. के विद्रोह का विस्तार इटावा, मैनपुरी, एटा, मथुरा, शाहजहांपुर, बदांयू, आजमगढ़, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, वारणसी, फैजाबाद, फतेहपुर, हाथरस आदि छोटे-छोटे नगरों एवं कस्बों तक भी हो गया था।
21 मार्च 1858 को कॉलिन कैम्पबेल द्वारा लखनऊ पर पुनः कब्जा कर लिया गया।
उ.प्र. का आधुनिक इतिहास
विदेशी शासन के खिलाफ जिहाद का नारा देने के उद्देश्य से 1866 में मुहम्मद कासिम ननीतवी एवं रशीद अहमद गंगोही ने देवबंद (स.प्र.) में इस्लामी मदरसे की स्थापना की।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उ.प्र. में सन् 1947 तक कुल 9 अधिवेशन हुये थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उ.प्र. में सर्वाधिक तीन-तीन बार अधिवेशन इलाहाबाद एवं लखनऊ में हुये।
- इलाहाबाद 1888, अध्यक्ष- जार्ज यूल
- इलाहाबाद 1892, अध्यक्ष – डब्ल्यू. सी. बनर्जी
- इलाहाबाद – 1910 अध्यक्ष – सर विलियम वेडरवर्न
- लखनऊ 1899, अध्यक्ष- रमेश चन्द्र दत्त
- लखनऊ 1916 अध्यक्ष- अम्बिका चरण मजूमदार
- लखनऊ 1936 अध्यक्ष – पं. जवाहरलाल नेहरू
अक्टूबर, 1920 में उ.प्र. का प्रान्तीय सम्मेलन
डॉ. भगवान दास की अध्यक्षता में मुरादाबाद में आयोजित किया गया।
मुराबाद में कांग्रेस के प्रांतीय सम्मेलन में महात्मा गांधी के ऐतिहासिक प्रस्ताव अहसयोग आंदोलन को स्वीकार किया गया।
जून, 1920 में इलाहाबाद में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में खिलाफत कमेटी की बैठक में खिलाफत आन्दोलन के प्रस्ताव को पास किया गया।
5 फरवरी, 1922 को गोरखपुर स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर पुलिस ने एक पुलिस स्टेशन को घेरकर जला दिया, जिसमें 22 पुलिसकर्मी की मृत्यु हो गयी थी।
नवंबर, 1928 में ‘साइमन कमीशन’ का लखनऊ में वहिष्कार किया गया था। इसका नेतृत्व पं. जवाहर लाल नेहरू ने किया था।
सन् 1923 में चितरंजन दास एवं मोती लाल नेहरू ने इलाहाबाद में स्वराज पार्टी की स्थापना की।
भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का प्रथम सम्मेलन पेरियार की अध्यक्षता में दिसम्बर, 1925 में कानपुर में हुआ था।
सितम्बर, 1924 में कानपुर के एक पत्रकार सत्यभक्त ने भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना की।
.संयुक्त प्रांत में लखनऊ के समीपवर्ती क्षेत्र में सन् 1920-22 के मध्य किसानों के बीच चले एका आंदोलन का नेतृत्व मदारी पासी नामक किसान ने किया था।
सन् 1924 में चंद्रशेखर आजाद के द्वारा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की।
.9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के निकट काकोरी में क्रांतिकारियों ने ट्रेन डकैती कर सरकारी खजाना लूट लिया था।
1928 में फिरोजशाह कोटला दिल्ली में भगत सिंह की सलाह पर एच. ‘आर. ए. में सोशलिस्ट शब्द जोड़कर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एच.एस. आर.ए.) कर दिया गया।
चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से मुकावली करते हुए स्वयं को गोली मारकर वीरगति को प्राप्त हो गये।