एक देश एक चुनाव
वर्तमान केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव मसूदा तैयार किया है केंद्र सरकार संपूर्ण देश में एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में है इस मसौदे को कैबिनेट ने अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है इसके लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाई गई थी जिसका अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी को बनाया गया था कमेटी के सदस्य रामनाथ कोविंद अध्यक्ष एनके सिंह पूर्व वित्त आयोग अध्यक्ष डॉ सुभाष कश्यप पूर्व लोकसभा महासचिव हरीश साल्वे संजय कोठारी है
एक देश एक चुनाव कमेटी ने सुझाव दिया है कि अब देश में चुनाव दो चरणों में कराए जाएंगे पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे वहीं दूसरे चरण में 100 दिन के अंदर स्थानीय निकायों निकायों के चुनाव कराए जाएंगे कमेटी के सिफारिश के अनुसार यदि किसी विधानसभा 5 वर्ष से पहले किसी कारण से भंग होती है तो अगले चुनाव शेष दिनों के लिए ही करवाए जाएंगे यदि 2019 से पहले किसी राज्य विधानसभा में चुनाव होते हैं तो तो विशेष विधानसभा का कार्यकाल 2019 तक ही निश्चित किया जाएगा यदि यह कानून बन जाता है तो देश में चुनाव की तस्वीर पूरी तरह से बदल जाएगी
यहां मैं आपको बता दूं यह देश में पहली बार नहीं हो रहा है इससे पहले भी देश में सबसे पहली बार 1951 52 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे यह प्रक्रिया निरंतर 1967 तक चलती रही 1967 के बाद यह प्रक्रिया नहीं चल सकी किसी कारण से विधानसभा समय से भंग होने लग गई और आगे यह परंपरा टूट गई
और फिर कभी भी एक साथ चुनाव करवा करवाई जा सके 1883 में भारतीय चुनाव आयोग ने एक बार एक साथ चुनाव कराने के लिए तत्काल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सुझाव दिया था लेकिन इसे इंदिरा सरकार ने आशीर्वाद कर दिया 1999 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में एक सिफारिश की कि यदि देश में चुनाव एक साथ करवाए जाए तो देश में विकास कार्य अधिक होगा।
एक देश एक चुनाव के पक्ष में तर्क
बार-बार चुनाव होने पर समय की बर्बादी होती है एक बार चुनाव होने से समय की बचत होगी बार-बार चुनाव में खर्च अधिक होता है इससे पैसे की भी बचत होगी साल में कहीं ना कहीं चुनाव होता है जिस आचार संहिता लगती है आचार संहिता में एक से दो महीने तक कोई कार्य नहीं हो पता है इससे भी छुटकारा मिलेगा बार-बार चुनाव में अर्थ सैनिकों को लगाया जाता है जिससे भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है अलग-अलग राज्य में चुनाव होने पर राजनीति दलों पर चुनाव जीतने का दबाव अधिक रहता है जिससे वह स्थानीय मुद्दों को नया मोड़ देने का प्रयास करते हैं
एक देश एक चुनाव के विपक्ष में तर्क
1.विरोध करने वालों का मानना है कि इस विधान के मूल संरचना का उल्लंघन होगा
2.यह लोकतांत्रिक संघीय ढांचे के विपरीत क्षेत्रीय दलों क्षेत्रीय दल कमजोर होंगे
3.राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ेगा
4.लोगों का मानना है कि यह व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी
5.बड़े राजनीतिक दलों का अधिक फायदा होगा क्योंकि उनके पास पैसा एवं परचेज एवं समर्थ अधिक होती है जबकि छोटे 6.दलों के पास पैसा एवं वर्चस्व काम होता है जिससे उनको नुकसान होगा
7.स्थानीय समस्याओं की अनदेखी होगी
8.मीडिया का और सोशल मीडिया का महत्व अधिक बढ़ जाएगा जिससे गलत अफवाहें फैलने का भी अधिक खतरा रहेगा।
एक देश एक चुनाव के समक्ष चुनौतियां
1.भारतीय क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी होगी।
2.राष्ट्रीय मुद्दों का दौड़ा रहेगा वर्चस्व रहेगा।
3.राष्ट्रीय दलों को अधिक लाभ मिलेगा।
4.यदि एक देश एक चुनाव कानून लागू हो गया तो संविधान में कई संशोधन करने पड़ेंगे
5.एक साथ चुनाव करना संपूर्ण देश में प्रशासनिक रूप से भी अधिक संरचना की आवश्यकता होगी।
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