मीर जाफर (Mir Jafar)
मीर जाफर (Mir Jafar) एक भारतीय इतिहास में मशहूर नाम है, जिन्होंने 18वीं सदी में बंगाल के नवाबशाही अधिकारी पद को संभाला था। वह ब्रिटिश परस्परविरोधी आन्दोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण रूप से संबद्ध थे।
मीर जाफर का जन्म 1691 में हुआ था। उन्होंने नवाबशाह सिराज-उद-दौला के शासनकाल में कई साल उनकी सेना में सेवा की। हालांकि, 1757 में जलियांवाला मैदान की लड़ाई में ब्रिटिश की हार के बाद, उन्होंने ब्रिटिश सेनापति रॉबर्ट क्लाइव और उनके सहयोगियों के साथ सांदीप ख़ाना योजना बनाई, जिसमें उन्हें नवाबशाही की सीधी पहुंच और विशेष लाभ मिला।
मीर जाफर की मदद से ब्रिटिश ने नवाबशाह सिराज-उद-दौला को हराया और मीर जाफर को बंगाल के नवाबशाह घोषित किया गया। यह ब्रिटिश के लिए एक महत्वपूर्ण पसार हुआ, जिससे उन्होंने अपनी आर्थिक और राजनीतिक सत्ता बढ़ाने में मदद की।
हालांकि, मीर जाफर के नवाबशाही कार्यकालको विवादों और अनियमितताओं के कारण घिरा गया था। उनकी प्रशासनिक अक्षमता और ब्रिटिश के नियंत्रण में रहने की संदेहास्पदता ने उनके खिलाफ सार्वजनिक आवामी और नवाब के भरोसे को कम किया। इसके परिणामस्वरूप, 1760 में मीर जाफर को नवाबी पद से हटा दिया गया। उनकी मृत्यु 1765 में हुई।
मीर जाफर की नवाबशाही का काल भारतीय इतिहास में विवादित रहा है। कुछ लोग उन्हें देशद्रोही मानते हैं, जबकि कुछ उन्हें एक न्यायप्रिय नेता मानते हैं जिन्होंने अपने हितों के लिए उच्चतम नवाबशाही की प्राप्ति के लिए चाहा। उनकी व्यक्तित्व और कार्यकाल को बारीकी से आकलन करने के लिए, उन्हें भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण एवं विवादित चरित्रों में से एक माना जाता है
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