साक्षात्कार परीक्षा के प्रश्नो के उत्तर देने की सही विधि क्या हो ?
1.स्वयं को प्रस्तुत करें – बताएं केवल आप ही उपयुक्त क्यों है
यद्यापि आप व्यक्तित्व परीक्षा के माध्यम से एक अधिकारी बनने जा रहें है परन्तु अपने मन में एक अच्छे विक्रेता की तरह व्यवहार करें” (लिंग समानता पर ध्यान दें) आप कुछ बेचने निकले है तथा आपको अपने अच्छे गुणों को बेचना है। आपको अपने दृढ निश्चय, विचार, विश्वास, नैतिक मूल्यों, सोच, तथा अपने दृष्टिकोण को दिखाना है तथा बोर्ड के पास इन्हें बेचना है। बोर्ड को आपको इस रूप में प्रभावित करना है कि आप ही क्यों सबसे उपयुक्त अभ्यर्थी है? उन्हें आपका चयन क्यों करना चाहिए? और यह आपके लिए आप द्वारा दिए गए उत्तर ही संभव बना सकते है। अतः आईये, प्रभावशाली ढंग से उत्तर देने की इस तकनीक को समझे तथा इस पर नियंत्रण हासिल करें।
2.प्रश्नों को समझे
जैसे ही आप से प्रश्न पूछा जाए इसे हिस्सों में विभाजित करने का प्रयास करें तथा प्रश्न को स्पष्ट तौर पर समझने का प्रयास करें। पहला प्रयास यह समझना हो कि बोर्ड का प्रश्न उस संबंधित विषय पर आप से ‘क्या’ अथवा ‘कैसे’ अथवा ‘क्यों’ अथवा ‘कब जानने के लिए है। दूसरा, यह पता करने का प्रयास करें कि वे आप से तथ्यों पर आधारित उत्तर चाहते है अथवा विश्लेषात्मक। तीसरा, यह समझने का प्रयत्न करें कि वे आपके उत्तर किसी निर्धारित ढंग से चाहते है जैसे कि उनके विचारों का समर्थन अथवा आप विषय पर अपनी स्वतंत्र राय रख सकते है।
साथ ही विषय को तार्किक, बौध्दिक तथा रूढ़िगत रूप से उप शीर्षकों में विभाजित करने का प्रयास करें। उदाहरण के लिए यदि आप से भारत की शिक्षा प्रणाली पर प्रश्न पूछा जाए तो शिक्षा को तीन स्तरों पर रखकर इस पर विचार कीजिए जो स्कूल, कालेज तथा विश्वविद्यालय स्तर पर है। स्कूली स्तर पर पुनः इसके तीन स्तर प्रारंभिक, माध्यमिक तथा उच्च स्तर को ध्यान में रखिए। एक बार पुनः शिक्षा को ग्रामीण तथा शहरी तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है। वर्गीकरण हेतु दूसरी एक पध्दति -तकनीकी तथा गैर तकनीकी प्रकार की है। इसके अलावा वोकेशनल तथा नॉन वोकेशनल शिक्षा के प्रकार है। पूछे गए प्रश्न के आधार पर आपको अपना उत्तर प्रस्तुत करना चाहिए।
3.ध्यान से सुनें
जब भी आप से कोई प्रश्न पूछा जाए तो, एकाग्रचित रहें तथा पूरा ध्यान लगाकर प्रश्न का प्रत्येक शब्द सुनें। अक्सर में एक शब्द की गलती अथवा लापरवाही आपको बहुत भारी पड़ सकती है। इसके अतिरिक्त, कभी भी, एक ही समय के दौरान, प्रश्न को सुनने तथा उत्तर को सोचने तथा तैयार करने का प्रयास न करें। जब आप से प्रश्न पूछा जा रहा हो प्रश्न भाषा, बोर्ड के शारीरिक तथा चेहरे के हाव-भाव पर ध्यान केन्द्रित रखें। इस समय आपका मस्तिष्क केवल एक ही कार्य में लगा हुआ हो प्रश्न के महत्वपूर्ण पहलुओं, प्रश्न के शब्दों तथा इसकी रूपरेखा को याद रखना। प्रश्न को पूरी तरह सुनकर तथा समझकर ही इसके उत्तर देने की दिशा में आगे बढ़े।
4.पीपीपी दृष्टिकोण (PPP Approach)
पल भर विराम लें ,
प्रक्रिया प्रारंभ करें तथा
प्रस्तुत करें
प्रश्न पूरा होने के पश्चात, अब आप उत्तर की रूपरेखा तैयार करना प्रारभ करें। इस प्रक्रिया हेतु आप कुछ क्षण ले सकते हैं। इस विराम के दोहरे लाभ है। पहला कि आप अपने उत्तर को सुन्दर सुव्यवस्थित, संतुलित तथा सम्पूर्ण बना सकते है। दूसरा, यह एक सकारात्मक संदेश देता है कि आप शांत तथा स्थिर स्वभाव के व्यक्ति है, जो तोल कर बोलते है। यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसकी बोर्ड अपेक्षा करता है।
इसका एक तीसरा तथा सुखद लाभ भी है। अक्सर ऐसा होता है कि प्रश्न पूछे जाने तथा इसके उत्तर दिए जाने के बीच में आए इस विराम के फलस्वरूप, बोर्ड सदस्य, स्वयं ही प्रश्न पर थोडा और प्रकाश डालते है. जिससे कि आपको कई मुख्य सकेत सूत्र मिल जाते है कि प्रश्न का उत्तर क्या तथा कैसे दिया जाए।
इसके पश्चात, सगत जानकारी को मन ही मन संसाधित कीजिए। जहां तक सभव हो, उत्तर को मुख्य बिन्दुओं से प्रारंभ करते हुए कम बिन्दुओं की ओर अग्रसर करें। इससे यह प्रभाव सामने आता है कि आप में वास्तविक चलते समय के दौरान ही किसी दिए गए विषय की जानकारी को संसाधित करने तथा इसे सुव्यस्थित ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता उपलब्ध है। संसाधित किए जाने के पश्चात, अब जानकारी को सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत कीजिए। यदि आपने प्रश्न को ध्यानपूर्वक सुना है तो, इसमें उपयोग किए गए शब्दों को उत्तर में समाहित करने का प्रयास कीजिए। बोर्ड के पास यह एक अच्छा सकेत देता है कि आपने प्रश्न को ध्यानपूर्वक सुना
5 . प्रस्तावना लम्बी न हों
किसी प्रश्न का उत्तर देते समय उसकी प्रस्तावना का उध्देश्य आपके उत्तर को एक परिदृश्य में लाना होता है। कई उम्मीद्वार जब प्रश्न के बारे में अधिक नहीं जानते है तो वे अपने उत्तर को बड़ा करने हेतु लम्बी भूमिका बनाने लगते है। आपको ऐसा करने से बचना है। बोर्ड के सदस्य होशियार एवं बुध्दिजीवी होते है ये आपकी इस योजना को सरलता से भाप लेंगें।
6 . उत्तर को सम्पूर्णता दें
आईये पहले यह समझने का प्रयास करें कि “उत्तरों की सम्पूर्णता से हमारा भाव क्या है।
“उत्तरों की सम्पूर्णता” का अर्थ है कि उत्तर में और अधिक जानकारी प्रदान करना जो इसमें तथ्यों साक्ष्यों वाक्यांशों, विरोधी पक्षों को जोड़कर की जाती है ताकि यह सुनने में मृदु लगें, व्यक्तिपरक न हो तथा उन परिस्थितियों की ओर भी इंगित करें जहां ये प्रामाणिक नहीं है।
अब यह प्रश्न उठता है कि हमें ऐसा करने की आवश्यकता क्यों है ? ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे प्रिय आकाक्षी अधिकारियों, जीवन में ऐसी कई परिस्थितिया ऐसी होती है, जो न तो सीधे सीधे सही होती है और न गलत। जब कोई भी विचारधारा पूरी तरह से न सही और न ही गलत हो, तो किसी एक विचारधारा के प्रति विश्वास प्रकट करने का अर्थ है कि हम उसके नकारात्मक पहलुओं को भी मान रहें है. जो निश्चित रूप से नहीं किया जाना चाहिए। अतः अब इस पहलू का महत्व सामने आता है। आप एक विचार को मानते हुए उस पर अपना मत प्रकट कर रहें है परन्तु साथ ही उसके नकारात्क पहलू तथा अपवादों को भी सामने रख रहें है। यह एक सकेत है कि आप में बिना किसी का पक्ष लिए, किसी विषय के निष्पक्ष विश्लेषण की सामर्थ्यता है।
कुछ ऐसे शब्द जो उत्तरों को सम्पूर्णता प्रदान करते है वे इस प्रकार से है “यह ठीक है यदि यह सत्य है, लेकिन जब”, “यह चल सकता है यदि” “कुछ हद तक” कुछ सीमा तक”, “लगभग”, “पूरी तरह से नहीं” इत्यादि।
उत्तर को सम्पूर्णता देने का अर्थ यह नहीं है कि आप किसी का पक्ष न लें। साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि आप का रुख स्पष्ट है परन्तु आप इसके दूसरे रूख से भी अवगत है।
7.निष्पक्षता का सम्मान करें
निष्पक्षता का अर्थ यह नहीं है कि आप तटस्थ बनें रहे अर्थात न पक्ष में हो और न विपक्ष में। ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसका अर्थ यह कि आप किसी विषय के विश्लेषण में पूरी तरह से विषयनिष्ठ हो तथा पक्षपात रहित हो। भाव यह है कि आप किसी समस्या का समाधान उसके गुणों के आधार पर करते है न कि व्यक्तिगत उन्मुखता / झुकाव के कारण। यदि आप निष्पक्ष है तो इसका अर्थ यह है कि न तो आप साम्यवादी सोच रखते है, न तो रगभेद रखते है न जातिवादी है, न लिंग भेद रखते है।
8.लिंगभेद न रखें
अपने संबोधन के दौरान लिंगभेद के प्रति तटस्थ भाव अपनाएं। जैसे चेयरमैन के स्थान पर चेयरपर्सन शब्द का उपयोग करें। सेल्समैन न कहकर “सेल्सपर्सन” कहें। आपका यह दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि आप उन व्यक्तियों में से नहीं है जो सोचते है कि यह संसार केवल पुरुषों के लिए, पुरुषों का तथा प्रश्नों के उत्तर देने की सही विधि पुरुषों द्वारा बनाया गया है।
मानवीयता रखें
जहां तक सभव हो, उत्तर देते समय, मानवीय गुणों का प्रदर्शन करते रहें। अक्सर ऐसा होता है कि आकाक्षी उम्मीदवार स्वय को व्यवहारकुशल, कानून का कड़ाई से पालन करने वाला तथा कानून व्यवस्था लागू करने वाला सिध्द करने के जोश में, स्वयं को “यांत्रिक” तथा “रोबोटिक के रूप में देते हैं. जिसमें मानवीय संवेदनाओं तथा विचारों में मानवीय स्पर्श का अभाव होता है। प्रस्तुत कर उदाहरणस्वरूप यदि एक डीएम के पद पर कार्य करते हुए आपको एक अवैध बस्ती को खाली करवाना है. तो आप उस जगह पर जाकर सीधे सीधे घरों को तोड़कर उन बस्ती वासियों को बेघर नहीं कर सकते। आपको वहा के वृध्दजनों, औरतो बच्चों, बीमारों के प्रति सहानुभूति रखनी होगी।। इसका अर्थ यह नहीं कि आप कार्रवाई नहीं करेंगें। इसका अर्थ यह है कि आपकी खाली करवाने की कार्रवाई करते समय इस विषय का ध्यान रखेंगें।
10.व्यावहारिक बनें
आपके उत्तरों में व्यावहारिकता तथा यथार्थवादिता झलकनी चाहिए। कभी भी ऐसा उत्तर न दें जो व्यावहारिकता के धरातल पर खरा न उतर सके अथवा उसे लागू करना बहुत कठिन हो। बोर्ड को कभी भी ऐसा आभास न होने दे कि आपके पास केवल किताबी ज्ञान है तथा आप जमीनी वास्तविकता से कोसो दूर है।
11.आशावादी बनें
आपके उत्तर आपकी सकारात्मक तथा आशावादी सोच का परिचय दें। किसी भी विषय पर निराशा से भरे एवं अप्रसन्नता लाने वाले उत्तर देने से बचे। किसी विषय से संबंधित समस्याओं अथवा बुराईयों का उल्लेख करना गलत नहीं है परन्तु साथ ही आपको उसका समाधान भी प्रदान करना चाहिए। इसका कुछ नहीं किया जा सकता” या “हमारे देश में ऐसा होना संभव नहीं” जैसे शब्दों का उपयोग करने से परहेज रखें।
12.केवल समाधान सुझाएं नहीं, समझाएं
सिर्फ समस्या के समाधान का सुझाव बताने तक ही सीमित न रहें, जहा तक सभव हो अपने सुझाए गए समाधान को लागू करने के उपाय भी बताने का प्रयास करें। उदाहरणार्थ, यदि आप सुझाव देते है कि किसी सरकारी फंडिंग को और अधिक होना चाहिए तो आपको यह भी उदाहरण देने चाहिए कि इसका व्यय कैसे किया जाएगा। यह फडिंग किन अभिकरणों के माध्यम से की जाएगी, क्षेत्रवार विभाजन कैसा होगा इत्यादि। इससे आपके मन की सोच की स्पष्टता की जानकारी मिलेगी।
13.लक्ष्य बेघन
किसी समस्या के कारणों का पता करते समय, उसकी जड़ तथा मूल कारणों का पता लगाने का प्रयास करें केवल ऊपरी अथवा गौण कारणों तक ही सीमित न रहें।
14.नजर मिलाकर बात करें
प्रश्नों को सुनते समय, बोर्ड सदस्यों से नजरे मिलाए रखें। यह आपकी दो तरह से सहायता करेगा। पहला, यह बोर्ड पर सकारात्मक प्रभाव डालता है कि आप माननीय सदस्यों को उचित तथा आवश्यक सम्मान दे रहें है। दूसरा, कई बार यह आपको बोर्ड सदस्यों के चेहरे के हाव-भाव पढ़ने के अवसर भी प्रदान करता है। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि कई बार उनका प्रश्न एक जाल की तरह होता है. जो उनकी आखों में हल्की सी हलचल अथवा चेहरे की मुस्कान के माध्यम से झलकता है और आप इस पर ध्यान दे सकते है।
उत्तर देते समय भी, आप बोर्ड सदस्यों से नजर मिलाकर रखें। जिस सदस्य ने आप से प्रश्न पूछा है आप उससे बहुत लम्बे समय तक उसकी आखों से अपनी आखों का संपर्क बनाए रखें लेकिन बीच में आप अन्य सदस्यों से भी आंखों से सम्पर्क स्थापित कर सकते है। इसके अतिरिक्त आपको यह भी ध्यान में रखना है कि आप अपना सिर तेजी से और लगातार न हिलाते रहे क्योंकि यह एक गलत संदेश देता है।
जिस सदस्य ने आप से प्रश्न पूछा है प्रथमतः उसकी आखों से अपनी आखों का संपर्क बनाए रखने के साथ ही यह महत्वपूर्ण है कि बीच में आप अन्य सदस्यों से भी आंखों से सम्पर्क स्थापित करें। ऐसा कई कारणों से आवश्यक है। प्रथमतः इस प्रकार आप अन्य सदस्यों के मन के विचारों का भी अनुमान लगा सकेंगें कि वे आपके उत्तर से संतुष्ट है अथवा नहीं। दूसरे इस तरह से अन्य सदस्यों को यह नहीं लगेगा कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। तीसरा यह एक सकारात्मक प्रभाव छोड़ता है कि आप चर्चा के दौरान बोलने के साथ साथ दूसरे सदस्यों को भी अपने साथ जोडकर रख सकते है। यह बीच में दूसरे सदस्य से आंखों का सम्पर्क, उस समय और भी आवश्यक हो जाता है जबकि कोई एक सदस्य एक के बाद लगातार प्रश्न पूछता जा रहा हो।
15.स्पष्टीकरण में हिचकिचाहट कैसी
यदि किसी कारणवश, आप प्रश्न को उचित रूप से सुन नहीं पाए हो तो बोर्ड से विनम्रतापूर्वक प्रश्न को दोहराने का अनुरोध करें। परन्तु ऐसा करते समय आप संयमशीलता का परिचय दें तथा इसकी पुनरावृत्ति न करें।
यदि किसी प्रश्न का अर्थ सही रूप से नहीं समझ पाएं है तो गलत उत्तर देने से बेहतर है कि इसे स्पष्ट कर लें। लेकिन ऐसा नम्रता से, सम्मान से तथा मृदुलता से किया जाना चाहिए। ऐसे परिदृश्य में आप इस प्रकार से पूछ सकते है महोदय, मैं आप से माफी चाहता हूं कि मैं समझा नहीं” महोदय,
क्या इसका भाव” इत्यादि। शब्दों उपयोग करें “महोदय, आपका भाव क्योंकि ऐसा करने मतलब रूप में लिया सकता कि आप की भाषागत क्षमता सवाल रहे आपको भी को बार बार नहीं दोहराना चाहिए।
16.त्रुटिहीन और संक्षिप्त उत्तर
आपका उत्तर गए प्रश्न अनुरूप होना चाहिए। इधर-उधर नही हाके। आपका उत्तर सही तथा संक्षिप्त । प्रथमतः, आपका प्रयास यही कि आप अपने उत्तर विशेष तथा मुख्य बिन्दुओं का उल्लेख तथा बहुत अधिक विस्तारपूर्वक हो। यदि बोर्ड आप किसी बिन्दु और विस्तारपूर्वक चर्चा चाहता तो वह दूसरा प्रश्न पूछ कर ऐसा सकता इस स्थिति आप अपनी बात विस्तारपूर्वक कह सकते है।
17.सिर्फ पूछे गए प्रश्न का उत्तर
इस प्रकार का प्रयत्न कभी न करें। अक्सर, हम वह उत्तर देने का प्रयास करते जो जानते न कि उस प्रश्न जो से पूछा जाता है। बोर्ड इससे यह सकेत ग्रहण करता कि आपकी समझने शक्ति बहुत कम है। साथ ही, बोर्ड यह समझता कि आप उन्हें मूर्ख बनाने का प्रयास कर है तथा बोर्ड सदस्यों यह बात बहुत बुरी लगती तथा इसके भयकर परिणाम उम्मीदवार को झेलने पड़ सकते है।
18.क्षमा करें, मुझे जानकारी नहीं कहने हिचकिचाएं नहीं
यदि आप किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानते तो सीधी तौर पर विनम्रतापूर्वक बोर्ड को यह सूचित करें महोदय, क्षमा चाहता मुझे इस विषय जानकारी नहीं है।” सामान्यतय उम्मीदवारों मन यह भावना बनी रहती कि ऐसा उत्तर बोर्ड को गलत संदेश प्रेषित करता तथा आपके अंको पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। परंतु यह सही नहीं है। आईये, अब इस प्रकार उत्तर की सुन्दरता देखें।
पहला, ईमानदारी की गई यह स्वीकारोक्ति की आप यह नहीं जानते, बोर्ड को दर्शाती है कि आप एक ईमानदार व्यक्ति है। दूसरा, यह कि आप एक साहसी व्यक्ति है, क्योंकि यह स्वीकार करने हेतु बहुत साहस चाहिए कि आप इस विषय के बारे जानकारी नहीं रखते तथा आप कहीं कमजोर है। तीसरे, ऐसा करने बोर्ड को बुरा लगने उत्तेजित होंने के अवसरों कमी आ जाती है क्योंकि यदि आप ऐसा उत्तर हैं, जो पूर्णतया गलत अंसगत तो बोर्ड नाराज हो सकता तथा इससे अगले प्रश्नों पर भी इसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चौथा, ऐसे करते हुए आप बोर्ड का अमूल्य समय बचा रहें है। पांचवा, यह स्वीकार करते हुए कि आप प्रश्न का उत्तर नहीं जानते आप अपने लिए प्रश्न पूछे जाने और अधिक अवसर जुटाते है, जहां कि आप बोर्ड के समक्ष अपनी योग्यता सिध्द कर सकते है।
19.आंशिक ज्ञान
यदि आप प्रश्न का आधा उत्तर जानते है अथवा आपको इसके बारे में थोड़ी सी जानकारी है परन्तु आप पूरी तरह से आश्वसत नहीं है तो ऐसी स्थिति में सदैव बोर्ड को आप यह कह कर सूचित कर सकते हैं महोदय, यद्यपि मैं पूर्णतः आश्वस्त नहीं हूं, परन्तु यदि आप अनुमति दें तो मैं उत्तर देने का प्रयास कर सकता हूं। ऐसी स्थितियों में, जब अभ्यर्थी के पास अल्प जानकारी होती है तो वह सामान्यतः यह सोचता है कि उसे उत्तर देने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए अथवा यदि यह उत्तर गलत हुआ तो बोर्ड को बुरा लग सकता है।
मेरे विचार से यह तरीका सही नहीं है क्योंकि जब आप सही उत्तर नहीं जानते अथवा पूरी तरह से नहीं जानते है तो आप ऐसा करने से पहले ही बोर्ड के ध्यान में ला रहे है और उनकी पूर्वानुमति से ही उत्तर दे रहे होते है। अब पहला प्रश्न तो यह उठता है कि एक अधूरा उत्तर देने के पीछे क्या तर्क है। इसका जवाब यह है कि जिसे हम ‘शायद सही’ अथवा ‘आधा सही मानते है, हो सकता है कि वह वास्तव में सही’ अथवा ‘पूर्णतः सही हो। अब यदि आप यह जोखिम नहीं उठाते हैं तो आप इस प्रश्न से अंक बटोरने का अवसर खो देते है।
दूसरे यदि आपके उत्तर का कुछ हिस्सा भी सही हो तो बोर्ड को यह जानकारी हो जाती है कि कम से कम उम्मीदवार को इस विषय की जानकारी तो है। साथ ही इसका बोर्ड पर एक सुदृढ तथा सकारात्मक प्रभाव जाता है कि आप ऐसे व्यक्ति है जो मुश्किलों का सामना करने का साहस रखता है। साथ ही, यदि आप के पास थोड़ी सी भी जानकारी हो तो उस दिशा में अग्रसर होने हेतु आपके पास हिम्मत, इच्छाशक्ति तथा क्षमता जैसे सभी गुण हैं। यह वह विशेषताएं है, जिनकी तलाश वह भावी अधिकारी में कर रहें है। यह बोर्ड को यह भी दर्शाता है कि आप के पास सोचा समझा जोखिम उठाने की क्षमता मौजूद है, जो एक दूसरा गुण है, जिसकी उन्हें तलाश है।
20.प्रश्न को घुमानें का प्रयास न करें
कई बार ऐसा होता है कि किसी एक विषय के एक आयाम पर प्रश्न पूछा जाता है, और समस्या यह होती है कि हमें उस विषय की जानकारी तो होती है परन्तु उससे सबधित पूछे गए आयाम के बारे में हम कुछ नहीं जानते। तब हम बोर्ड को मूर्ख बनाने का प्रयास करते है और उसी विषय पर बोलते हुए उसके किसी अन्य आयाम पर उत्तर देना आरंभ कर देते है। इसी उपाय को प्रश्न को घुमाना कहते है, जो कभी नहीं किया जाना चाहिए। आपको कभी भी अपने से बडे, बुध्दिमान तथा अनुभवी व्यक्तियों को मूर्ख बनाने अथवा छोटा दिखाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
ऐसी स्थितियों में, आप अति विनम्रतापूर्वक बोर्ड को सूचित कर सकते है कि यद्यपि आपको इसके विषय की जानकारी है परन्तु आप इस पूछे गए विषय विशेष की जानकारी नहीं रखते है।
21.उत्तर के पश्चात की मौन स्थिति
कई बार ऐसा होता है कि आपके उत्तर देने के शीघ्र पश्चात बोर्ड आप से कोई प्रश्न नहीं पूछता है। ऐसी स्थिति में, अक्सर उम्मीद्वार यह सोचकर आगे बोलना प्रारंभ कर देता है कि शायद बोर्ड अभी और व्याख्या चाहता है। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। अतः मैं इस बात पर महत्व देना चाहता हूं कि आपको यह पता लगाने का प्रयास करना होगा कि बोर्ड द्वारा इस मौन के पीछे क्या कारण है। कई बार, वे आप से और व्याख्या चाहते हैं तथा इसका पता आपको उनकी शारीरिक हाव भाव की भाषा से करना होता है। यदि ऐसा ही हो तो आप आगे बोलना जारी रख सकते है। परन्तु ऐसा भी हो सकता है कि वे आपके उत्तर से सतुष्ट हो तथा शायद आपके उत्तर पर विचार कर रहे हो तथा सिर्फ अगले प्रश्न के विषय में सोच रहें हों। कई बार बोर्ड द्वारा यह चुप्पी, जानबूझकर, आपकी परीक्षा लेने हेतु रखी जाती है। बोर्ड सिर्फ यह जानने में उत्सुक होता है कि ऐसी स्थिति आप में घबराहट लाती है या आप अपनी शांति को बरकरार रख पाते है। यह एक बड़ी अजीब स्थिति होती है तथा यहा आपको हर कदम बड़ी सावधानीपूर्वक रखना होता है।
22.प्रत्युत्तर
बोर्ड सदस्यों द्वारा दिए गए किसी भी प्रत्युत्तर का यथाशीघ्र उत्तर दें। यदि वे आपके किसी उत्तर हेतु आपको बधाई दे तो तहेदिल से हार्दिक धन्यवाद दें। यदि वे किसी विषय पर आपकी गलती में सुधार करें तो उन्हें धन्यवाद दें। परतु ईश्वर न करें यदि वे आपको किसी कारणवश डांट डपट लगाए, तो विनम्रतापूर्वक माफी मागे तथा ऐसा न दिखाएं कि इससे आपके अहम् को चोट पहुंची है।
23.निर्णय लेना
कई बार ऐसे प्रश्न पूछ लिए जाते है जो दुविधा में डाल देते है अर्थात जिसमें उचित अनुचित, हा-नहीं या सही-गलत हेतु कोई पक्का नियम नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में आपको अपना पक्ष रखना होता है तथा सभावना यह भी होती है कि वह चुना गया पक्ष सबसे बढ़िया पक्ष नहीं होता । अतः अपना पक्ष रखते समय सदैव दूसरों के विचारों के प्रति स्थान रखिए। कभी भी किसी विषय को लेकर अडियल रूख नहीं अपनाए। इसका अर्थ यह नहीं कि आप कोई पक्ष ही नहीं लें अथवा ढुलमुल रवैया अपना लें। इसका अर्थ यह है कि आप अपनी बात कहें परन्तु अपने उत्तर को इस प्रकार से प्रस्तुत करें कि भविष्य में आवश्यकतानुसार इसमें कुछ बदलाव लाया जा सके।
24.वैचारिक मतभेद
आपके तथा बोर्ड के मध्य अक्सर वैचारिक मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कई परिस्थितियां ऐसी हो सकती है। एक स्थिति यह है कि जैसे आप एक विचार प्रकट करते है तथा बोर्ड का उस पर कुछ और मत हो, तब आप अनुभव करते है कि आपका उत्तर कुछ सीमा तक गलत है। तब ऐसी स्थिति में, अपनी गलती को स्वीकार कीजिए और उनके उत्तर पर विश्वास दिखाते हुए, स्पष्ट कीजिए कि आप ने सही उत्तर को जानने के बाद ही ऐसा किया है।
ध्यान देने योग्य बात: अपने मत को बदलते वक्त तथा बोर्ड के विचार को मानते समय आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि बोर्ड को ऐसा न लगे कि आपने ऐसा इसलिए किया कि आप अपने निर्णयों पर कायम नहीं रह पाते अथवा आपका ऐसा करने का उध्देश्य बोर्ड को खुश करना था या फिर आप शीघ्रता से दबाव में आ जाते हैं। इसके ठीक बिल्कुल विपरीत, जैसा मैने पहले सुझाव दिया था कि आपको अपने विचार में बदलाव हेतु कारण बताना चाहिए। अतः आप कह सकते है कि” जी हां महोदय, मैं मानता हूं कि आपका विचार सही है। मैं गलत था क्योंकि……
एक ऐसी स्थिति भी आ सकती है जहां बोर्ड द्वारा व्यक्त विचार आपके विचार के अनुरूप नहीं है लेकिन इसका स्पष्टतया कोई सही अथवा गलत हल नहीं है। ऐसी परिस्थिति में, आपको बोर्ड के परिपेक्ष / परिप्रेक्ष्य को पूरी गंभीरता से समझते हुए अपने विचार पर अडिग बने रहना है। उनके मत का सुनने के उपरांत, जिस सीमा तक आप उस से सहमत हो, आपको उसे स्वीकार करना चाहिए तथा शेष हेतु आप विनम्र होकर कह सकते है निश्चित ही महोदय, मैं पूरे विषय को फिर से आपके बताए नए दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करूगा।
इस प्रकार का उत्तर देकर आप बोर्ड का यह बताने में सफल रहेंगें कि न तो आप बहुत ही अडियल किस्म के वह व्यक्ति है जो दूसरों के विचारो को मानने के इच्छुक नहीं होते तथा साथ ही आप उन में से भी नहीं जो किसी विषय पर, सरलता से अपने विचार बदल लेते है। आप यह बताने का प्रयास करते है कि आत्मविश्वास तथा दूसरों को साथ लेकर चलने का विवेकपूर्ण मिश्रण आपकी विशेषता है।
एक दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि जहां बोर्ड सदस्यों द्वारा प्रकट मत आपके अनुसार पूर्णतयः गलत है। सामान्यतयः बोर्ड का ऐसा विचार जो पूरी तरह से गलत हो, इसके पीछे, प्रायः यह सभावना होती है कि बोर्ड द्वारा ऐसा विचारपूर्वक यह जानने कि लिए किया जाता है कि दबाव में आकर कहीं आप उनका समर्थन तो नहीं करते है या फिर आप के पास गलत को गलत कहने की क्षमता तथा साहस है। अतः ऐसी स्थितियां में, अपने विचार का समर्थन करें परन्तु ऐसा कभी भी नहीं लगना चाहिए कि आप अभिमानी हैं।
ध्यान देने योग्य बात: आपमें इतनी बुध्दिमता होनी चाहिए कि आप यह पता लगा सकें कि वास्तव में बोर्ड जानबूझकर गलत विचार रख रहा है या फिर आप ही उनके द्वारा रखे गए विचार को नहीं समझ पा रहें है।
25.गलती स्वीकार करें
यदि आपको ऐसा लगे अथवा बोर्ड यह बताए कि आपने उत्तर देने में गलती की है तो शीघ्रता से अपनी गलती को स्वीकार करें। गलती करना कोई बड़ी बात नहीं। ऐसा होता है तथा ऐसा किसी के साथ, कभी भी, कही भी हो सकता है। इसमें कोई असामान्य बात नहीं है। लेकिन आसामान्य बात तब है जब समझते हुए, जानते हुए भी एक ही गलती को लगातार दोहराया जाए। ऐसी स्थिति में यह गलती आपका अहम् एवं अभिमान में परिवर्तित हो जाती है। यह एक भंयकर भूल है, जिससे आपको हर हाल में दूर रहना होगा।
26.दृढ़ निश्चयी बनें
आप अपने मन में दृढ निश्चय रखें परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अहंकारी बन जाए। इन दोनों के मध्य अंतर होता है। दृढ़ निश्चय का अर्थ है कि आप अपने निर्णय के प्रति अटल है। आप अपने निर्णय पर विश्वास रखते है तथा जब तक कि आपके पास उचित तर्क न हो आप अपने निर्णय को नहीं बदलते। इसके विपरीत, अभिमान का अर्थ है कि यदि आप यह जान भी लें कि आप का निर्णय गलत था और इसके लिए आपको तर्क तथा कारण दिए जा चुके है. तब भी आप अडियल बने हुए है तथा अहम् तथा अभिमान के कारण आप अपने निर्णय को नहीं बदलते। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।
27.धैर्यशील
एक स्थिति ऐसी आ सकती है कि आप से एक बहुत ही कठिन या विवादित अथवा उकसाने वाला / भड़काऊ प्रश्न पूछा जाता है। ऐसे समय में आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। दूसरी परिस्थिति यह है कि आप से एक ऐसा प्रश्न पूछा जाता है जो आपने बहुत अच्छी तरह से तैयार किया है। ऐसी के दौरान आपको उत्तर देने में जल्दबाजी नहीं दिखानी है। व्यक्तित्व परीक्षा में सदैव आपको अपनी भावनाओं में धैर्यशीलता बनाए रखनी है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आपको एक रोबोट की तरह किसी भी भावना अथवा चेहरे के हावभाव के प्रति शून्यता दर्शानी है। इसका साधारण सा अर्थ यह है कि आपको बोर्ड को यह दर्शाना है कि सफलता अथवा विफलता दोनों ही स्थितियों में आप धैर्यवान तथा शांत बने रह सकते है। धैर्य तथा शाति की यह महत्वपूर्ण विशेषता को, बोर्ड सदैव गंभीरता से अभ्यर्थी में चाहता है।
28.अधीरता से बचें
आकाक्षी अभ्यर्थी के सामने सबसे सामान्य समस्याओं में से एक है अपनी घबराहट तथा बैचेनी पर नियंत्रण कैसे करें। इससे पहले कि मैं इस प्रश्न का उत्तर दू, यह जान लें कि घबराहट होना कोई बुरी बात नहीं है। आप उच्च शिक्षित, मेरिट प्राप्त, अनुभवी तथा बुध्दिमान व्यक्तियों के सामने बैठे हैं। उनके सामने थोड़ी सी घबराहट होना स्वाभाविक सी बात है। मैं यह कहने का जोखिम भी लेता हू कि क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक सी बात है अतः बोर्ड भी इस हल्की सी घबराहट की सराहना करेगा। लेकिन यह घबराहट एक सीमा तक होनी चाहिए तथा आपको एक अत्यधिक डरे हुए व्यक्ति के रूप में न प्रस्तुत करें।
अब प्रश्न पर आते है कि इस बैचेनी को कैसे दूर किया जाए। इस हेतु सबसे महत्वपूर्ण तकनीक यह है कि कभी झूठ न बोलें। यदि आप उत्तर देते समय सच बोल रहें है तो तनाव तथा बैचेनी का
मुख्य कारण यहीं समाप्त हो जाता है। अब अगर आपके सामने यदि कठिन अथवा विकट परिस्थितियां है तो स्वयं को बहुत आराम से यह याद करवाएं कि घबराहट, स्थितियों को बद से बदतर कर देतेया अतः सबसे बढ़िया हल है शांत बने रहें।
29.कूटनीतिज्ञ न बनें
अक्सर उम्मीद्वार यह सोचता है कि वह बिल्कुल संतुलित उत्तर देगा और कूटनीतिज्ञ बन मुद्दे पर उत्तर देने में पक्ष अथवा विपक्ष कुछ नहीं चुनेगा। मित्रों, मेरे अनुसार यह गलत सोच है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप उत्तरों में संतुलन न स्थापित करें अथवा कूटनीतिज्ञ की तरह पेश न आए अथवा किसी मामले पर उसके पक्ष अथवा विपक्ष में एक अडिग विचार स्थापित कर लें। मैं सिर्फ यह कहने का प्रयास कर रहा हूं कि यदि आप बुध्दिमान है तो आपका बोर्ड आप से ज्यादा बुध्दिमता रखता है। उनके साथ कूटनीतिज्ञ बनने का प्रयास न करें। साथ ही, उन्हें नौकरशाही के समान तटस्थ बनें रहने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं है। एक विषय विशेष पर अपना पक्ष कायम करने में कुछ गलत नहीं है परन्तु दूसरे पहलुओं पर विचार किए बिना अपनी राय कायम करना गलत है।
30.उत्तर देने के कुछ सही तरीके
- अपने उत्तरों में विषयनिष्ठ / वस्तुनिष्ठ, संयमी, संतुलित तथा निष्पक्ष बने रहें।
- यदि आप से कोई उकसाने वाला/उत्तेजक प्रश्न भी पूछा जाए तो भी शांति, धैर्यशीलता तथा शीतलता का परिचय दें।
- बोर्ड सदस्यों के साथ अति विनम्र बनें रहें तथा उनके प्रति उच्च सम्मान की भावना बनाएं रखें।
- बोर्ड सदस्यों के भावों के साथ तालमेल रखें। यदि वे किसी विषय पर मुस्कराए तो आप भी उनका साथ दें। परन्तु यह केवल एक मुस्कान हो तेज हसी नहीं। इसी प्रकार से यदि वे किसी विषय पर दुख व्यक्त करें तो आप भी इसी प्रकार अपनी संवेदना दिखाए। ऐसा करते समय ध्यान रखें कि कहीं आप ऐसा सकेत तो नहीं प्रेषित कर रहें हैं कि आप उनकी नकल कर रहें है या उनका मजाक बना रहें है। सिर्फ यह दर्शाए कि उस विषय पर आपकी भावनाएं भी उनकी जैसी ही है।
- आप बोर्ड से जो भी बात कहें, आपका आत्मविश्वास, भरोसा, निष्ठा तथा दृढ़विश्वास उसमें पूरी तरह से प्रतिबिम्बित हो।