सिराजुद्दौला
1756 ईस्वी में, सिराजुद्दौला ने कालकाटा को विजयी कर लिया था। उन्होंने इससे पहले ब्रिटिश कंपनी के कई व्यापारिक पड़ावों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके कारण ब्रिटिशों को बहुत नुकसान हुआ था। इसके पश्चात, ब्रिटिश भारतीय कंपनी ने एक सेना बनाकर कोलकाता को पुनर्गठित करने का फैसला किया।
ब्रिटिश सेनाने 1757 ईस्वी के प्लासी युद्ध में सिराजुद्दौला की सेना को हरा दिया। सिराजुद्दौला खुद कोई भारतीय आर्मी की बजाय राजसी समूह चलाने वाला नवाब था, जिसके कारण उन्हें उनके अनुयायों द्वारा समर्थित नहीं किया गया। उन्हें अपने अंतिम दिनों में अपने राजमहल से भागना पड़ा और बाद में वह बंगाल के मेहमान नगरी मुर्शिदाबाद में मार डाले गए।
सिराजुद्दौला की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश सेनाने बंगाल में व्यापार के क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित किया, और बाद में बंगाल पर इसका शासन सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन स्थानांतरित हो गया।
सिराजुद्दौला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, क्योंकि उनका नीलांचल के प्लासी युद्ध में हार, जिसे की प्राचीन भारतीय इतिहास में एक बड़ी घटना माना जाता है, ने ब्रिटिश कंपनी को बंगाल में प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दी।
प्लासी के युद्ध के बारे में बताएं।
1757 में भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण घटना था। यह युद्ध ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी और बंगाली साम्राज्य के बीच हुआ था।
इस युद्ध की मुख्य घटना जगतसेट और नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुई। जगतसेट, जो ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि थे, नवाब सिराजुद्दौला के राज्य में पहुंचे और कवर्ची नामक एक स्थान पर अपना शिविर स्थापित किया। नवाब ने इसे एक भरमर या खुफिया दृश्य के रूप में देखा और उसे विस्फोटक के रूप में लिया।
इसके बाद नवाब सिराजुद्दौला ने कोलकाता को कब्जा कर लिया और ब्रिटिश कर्मचारियों को बंदी बना लिया। ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी ने इस पर प्रतिक्रिया देने का फैसला किया और उन्होंने अपने सेना को नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ आग्रहित किया।
इसके बाद ब्रिटिश और नवाब सिराजुद्दौला की सेनाएं 23 जून 1757 को पलसी के मैदान में टकराईं। युद्ध के पहले ही चरण में, ब्रिटिश सेना द्वारा की गई कुशल योजना और तकनीकी ताकत के कारण, नवाब सिराजुद्दौला की सेना हार गई। इसके पश्चात, नवाब भागदौड़ कर अपने राजधानी मुर्शिदाबाद की ओर चले गए, जहां उन्हें ब्रिटिश सेना ने पीछा किया और उन्हें ७ जुलाई १७५७ को गिरफ्तार कर लिया।
बंगाल के युद्ध के बाद, ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी ने अपने आदेश और अधिकारों का विस्तार किया, और वे नवाबों और भारतीय राजाओं के ऊपर आधिकारिक रूप से शासन करने लगे। यह युद्ध ब्रिटिश शासन की प्रारंभिक चरण का एक महत्वपूर्ण कदम था और बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण संकेत साबित हुआ।
रॉबर्ट क्लाइव (Robert Clive)
रॉबर्ट क्लाइव (Robert Clive) ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी के एक बहुत प्रमुख और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्हें ब्रिटिश भारत के शासन की योजना को प्रगति दिलाने, सैन्य सफलता प्राप्त करने और अपने सामरिक योगदान के लिए प्रसिद्धता प्राप्त हुई।
क्लाइव ने 18वीं सदी की पहली तिमाही में कई महत्वपूर्ण जीत हासिल कीं। सबसे पहले, 1751 में, उन्होंने एक सैन्य अभियान के दौरान अर्कोट फोर्ट को विजयी बनाया और फ्रेंच को समुद्री सत्ता से बाहर धकेल दिया। उन्होंने अपने सैन्य कुशलताओं और रणनीतिक चतुराई के लिए प्रशंसा प्राप्त की गई और उन्हें कंपनी की विशेष प्रतिष्ठा मिली।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण जीत, जो उनकी प्रसिद्धि को स्थापित करने में मदद की, पलसी के युद्ध में हुई। 1757 में, क्लाइव ने नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ पलसी के मैदान में ब्रिटिश सेना का नेतृत्व किया। इस युद्ध में ब्रिटिश की कुशल रणनीति और तकनीकी ताकत के कारण, नवाब सिराजुद्दौला की सेना हार गई और उन्हें ब्रिटिश को सरंक्षण और शासन करने का मौका मिला।
क्लाइव ने इस युद्ध के बाद ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी के अधिकार का विस्तार किया और ब्रिटिश सत्ता को स्थापित करने में मदद की। उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दायित्वपूर्वक बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के गवर्नर-जनरल के रूप में नियुक्त किया।
क्लाइव के प्रभावशाली सामरिक योगदान के कारण, उन्हें “इंडिया के सेकंड अलेक्सेंडर” के रूप में जाना जाता है। वे ब्रिटिश भारत के शासन को मजबूत करने और ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी की सत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक प्रमुख नेता रहे हैं।
मीर जाफ़र
बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बाद उनके स्थानांतरण के बाद नवाब बने।जब पलसी के युद्ध में ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी ने नवाब सिराजुद्दौला को हराया, तो मीर जाफ़र को कंपनी की समर्थन में नवाब के पद पर बैठाया गया। इससे पहले भी, मीर जाफ़र नवाब सिराजुद्दौला की सेना में एक महत्वपूर्ण अधिकारी रहे थे, और प्रथम कारणों में से एक था जिसके कारण नवाब की सेना युद्ध के दौरान हारी गई।
हालांकि, जब मीर जाफ़र नवाब बने, तो उन्हें ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी के समर्थन में विभिन्न आर्थिक और राजनीतिक अनुबंधों का पालन करना पड़ा। यह उनकी सरकार पर ब्रिटिश कंपनी के प्रभाव को बढ़ाने और उनके हाथ में अधिक सत्ता और नियंत्रण प्राप्त करने की अनुमति देता था।
मीर जाफ़र की नवाबी कार्यकाल भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, और कायदे का अनुपालन की कमी के कारण विख्यात हुई। बाद में, ब्रिटिश पूर्व इंडिया कंपनी ने मीर जाफ़र की प्रशासनिक असमर्थता को देखते हुए उन्हें नवाब पद से हटा दिया और उनके बेटे मीर कासिम को नवाब बनाया। मीर जाफ़र की मृत्यु 1764 में हुई।
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