कॉरिओलिस बल Coriolis force

पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनें अपनी मूल दिशा में विक्षेपित हो जाती हैं। इसे कॉरिओलिस बल कहते है। इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है जिसने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन 1835 ई. में किया। इस बल के प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, अतः इसे फेरेल का नियम (Farrel’s Law) कहते हैं। इसे बाइज-बैलेट नियम द्वारा भी समझा जा सकता है।

इस नियम के अनुसार, “यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो, तो उच्च दाब उसके दायी ओर तथा निम्न दाब उसके बायीं ओर होगा।” दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थिति इसके ठीक विपरीत होगी। कॉरिओलिस बल प्रभाव विषुवत रेखा पर शून्य होता है। अर्थात् विषुवत रेखा पर पवनों की दिशा में कोई विक्षेप नहीं होता है। इस बल का अधिकतम प्रभाव ध्रुवों पर होता है। अर्थात् ध्रुवों पर पवनों की दिशा में अधिकतम विक्षेप होता है।

Optional Geography click here

73490cookie-checkकॉरिओलिस बल Coriolis force

5 thoughts on “कॉरिओलिस बल Coriolis force”

Leave a Comment